प्यासे कौवे की कहानी भारत में रहने वाले किस विद्यार्थी ने नहीं सुनी होगी। लगभग सभी भाषाओं में इस कहानी का अनुवादित रूप उपस्थित है।
मुझे स्मरण है कि मैं जब द्वितीय श्रेणी का छात्र था तो मुझे ये कहानी आङ्गल भाषा में स्मरण करने के लिये कहा गया था। बहुत कठिनीई हुई थी क्योंकि पञ्जाब के एक छोटे से गाँव में 80 के दशक में कौन आङ्गल भाषा में बात करता था।
जैसे जैसे बड़े हुये तथा नई पीढ़ी को पाठशालाओं में जाते देखा, तब तक इस भाषा का प्रयोग बढ़ चुका था। घरों में तथा साधारण हिन्दी के वाक्यों में कई शब्दों का प्रयोग होता था जो कि आङ्गल भाषा के थे।
परन्तु संस्कृत में इस कहानी का आनन्द उठाने के अवसर नहीं मिल पाया। आज अपने पाठकों तथा विभिन्न पाठशालाओं के विद्यार्थीयों के लिये ये कहानी संस्कृत भाषा में प्रस्तुत है।
संस्कृत भाषा में प्यासा कौवा कहानी– तृषितः काकः
एकः काकः अस्ति। सः बहु तृषितः। सः जलार्थं भ्रमति। तदा ग्रीष्मकालः। कुत्रापि जलं नास्ति। काकः कष्टेन बहुदूरं गच्छति। तत्र सः एकं घटं पश्यति।
काकस्य अतीव सन्तोषः भवति। किन्तु घटे स्वलपम् एव जलम् अस्ति।
जलं कथं पिबामि।
इति काकः चिन्तयति।
सः एकम् उपायं करोति। शिलाखण्जान् आनयति। घटे पूरयति। जलम् उपरि आगच्छति। काकः सन्तोषेण जलं पिबति।
(इस कहानी का संस्कृत रूप संस्कृतभारती के द्वारा प्रकाशित पत्रालयद्वारा संस्कृतम् पत्रिका के द्वितीय भाग में से ली गई है)